जयपुर। सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्य में पारंपरिक रूप से संरक्षित “ओरण” भूमि को वन भूमि का दर्जा देने संबंधी ऐतिहासिक निर्णय के अनुपालन में शुक्रवार को राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जितेन्द्र राय गोयल की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय बैठक आयोजित की गई।
गोयल ने बताया कि यह निर्णय न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि पारंपरिक ग्रामीण आस्थाओं और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा की दिशा में भी एक बड़ा प्रयास है। उन्होंने बताया कि यह प्रक्रिया राज्य की पांरम्परिक ओरण संस्कृति व पर्यावरण संतुलन के लिए आवश्यक है। साथ ही, ओरण स्थानीय जैव विविधता के संरक्षण के लिए भी जरुरी है।
इस दौरान वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव श्रीमती अर्पणा अरोड़ा ने कहा कि ओरण जमीनों का सेटेलाइट रीमोट सेंसिंग तकनीक के द्वारा सर्वे कर डिमार्केशन किया जाएगा। राज्य के विभिन्न जिलों में स्थित “ओरण” भूमि की पहचान कर उसे राजस्व अभिलेखों में वन भूमि के रूप में दर्ज करने की कार्यवाही प्रारंभ की जाएगी। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में स्थानीय ग्रामीण समुदायों, पंचायती राज संस्थाओं तथा राजस्व विभाग का सक्रिय सहयोग लिया जाएगा।
अतिरिक्त मुख्य सचिव ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि एक कार्य योजना तैयार कर समयबद्ध रूप से इस निर्णय को लागू किया जाए। साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाए कि “ओरण” भूमि पर किसी प्रकार का अतिक्रमण या अवैध गतिविधि न हो। बैठक में राजस्व विभाग के प्रमुख शासन सचिव दिनेश कुमार, प्रधान मुख्य वन संरक्षक अरिजीत बनर्जी, प्रधान मुख्य वन संरक्षक अनुराग भारद्वाज सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी और संबंधित वन अधिकारी उपस्थित रहे।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की अनुपालना में प्रदेश में “ओरण” जमीन को वन भूमि का दर्जा देने हेतु बैठक का आयोजन

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